
त्रेतायुग में भगवान श्री राम चंद, द्वापर मेें श्रीकृष्ण और कलियुग में श्री वेकटेंश्वर ने अवतार लेकर मानव जगत की रक्षा की है। ऐसी मान्यता है कि बालाजी श्री विष्णु कलियुग में बैकुंठ को छोड़कर तिरुपति-तिरुमला की पहाड़ी पर माता लक्ष्मी-पद्मावती के साथ विराजमान हैं। भगवान श्री वेंकटेश्वर के दर्शन से ही मनुष्यों के सभी पाप कर्म का नाश हो जाता है। और उन्हें सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है। विश्व में सबसे समृद्ध भगवान के रूप में ख्याति प्राप्त तिरुपति बालाजी का दर्शन हर साल क

धन के देवता के रूप में प्रसिद्ध तिरुपति बालाजी का मंदिर आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित हैं। चेन्नई से करीब 130 किलोमीटर दूर तिरुपति रेल-सड़क और वायु मार्ग से जुड़ा है। आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु की सीमा पर सप्तगिरी पर्वत श्रृंखला के शीर्ष पर विराजमान भगवान श्री वेंकटेश्वर की कई दंत कथाएं है। इसके मुताबिक ऋषियों ने मानव जगत के कल्याण हेतु महायज्ञ का आयोजन किया और इसके फल के लिए उचित देवता की जवाबदारी महार्षि भृगृ को सौंपी गई। ब्रम्हा, विष्ण,ु महेश में से पात्र चयन की प्रक्रिया में महार्षि भृगृ को ब्रम्हा और महे


एक दूसरी दंतकथा के मुताबिक भगवान विष्णु ने यहां विश्राम किया था। इसके लिये गरुण ने बैकुं

दूसरी ओर मंदिर निर्माण को लेकर इतिहासकारों की अलग-अलग राय है। लेकिन पांचवी शताब्दी में यह मंदिर प्रमुख धार्मिक स्थल बना हुआ है। तमिल राजा थोडेईमान के बाद चोल और कांचीपुरम के पल्ल

11 वीं शताब्दी में संत रामानुजचार्य ने तिरुमला की पहाडिय़ों में तपस्या की और श्री वेंटकेश्वर ने उन्हें आशीर्वाद प्रदान किया। वे 120 वर्षों तक जीवित रहे। रामानुजाचार्य ने इसकी ख्याति को दूर-दूर तक पहुंचाया।
तमिल भाषा में तिरु का अर्थ संस्कृत के शब्द श्री के समान माता लक्ष्मी के लिए प्रयोग होता है अत: तिरुपति यानी लक्ष्मी पति। तिरुपति से करीब 22 किलोमीटर की ऊंचाई पर सप्तगिरी पर्वत, शेषनाग के फन की तरह सात पहाडिय़ों की श्रृंखला है। शेषाद्रि, नीलाद्रि, गरुड़ाद्रि, अंजनाद्रि, वृषभाद्रि, नारायणाद्रि और वेंकटाद्रि। सातवीं पहाड़ी वेकटाद्रि पर ही स्थापित है श्री वेंकटेश्वर का विग्रह। दक्षिण भारतीय वास्तुकला एवं शिल्प का अद्भुत उदाहरण है यह मंदिर।
मंदिर परिसर में अनेक द्वार और मंडप स्थापित है। मुख्य मंदिर स्वर्ण पतरों से विभूषित है। जिसके गर्भग्रह में भगवान की सात फुत ऊंची श्याम वर्णीय प्रतिमा स्थापित है। भगवान श्री बालाजी अपने हाथ में शंख, पद्म, चक्र और गदा धारण किये हुए हैं। एक ओर श्रीदेवी तो दूसरी ओर भूदेवी विराजमान है। भगवान के विग्रह पर भीमसेनी कर्पूर का तिलक किया जाता है,जो प्रसाद के रूप में वितरित होता है। भगवान वेंकटेश्वर के दर्शन से पूर्व स्वामी पुष्करिणी में स्नान कर नये कपड़े धारण करने के पश्चात सरोवर के तट पर बने वराह स्वामी का दर्शन कर नैवेघम चढ़ाना चाहिए। कहते हैं इस क्षेत्र के स्वामी वराह थे। भगवान श्री वेंकेटेश्वर के दर्शन पश्चात हुंडी में केश एवं धन-द्रव्य अर्पण की परंपरा है और यह माना जाता है कि भगवान अपने भक्तों को चढ़ावे से कई गुना अधिक वापसी का आशीर्वाद प्रदान करते हैं। दर्शन पश्चात भक्तों को प्रसाद के रूप में मीठी पोंगल या दही-चावल प्राप्त होता हैं। वहीं तिरुपति के लड्डू भी अपने विशिष्टता के लिए प्रसिद्ध है। बेसन, घी और सूखे मेवे से बने लड्डू का पेटेंट भी किया गया है
तिरुमला की सम्पूर्ण व्यवस्था टीटीडी के देखरेख में होती है। दक्षिण भारत के इस मंदिर की कई खासियतें हैं। सबसे बड़ी यह की इस संपूर्ण क्षेत्र की साफ-सफाई हर वक्त की जाती है। दूसरे यात्रियों के आवास एवं भोजन की सबसे अच्छी व्यवस्था है। आवास के लिए हजारों काटेज और बड़े-बड़े काम्प्लेक्स है तो नि: शुल्क भोजन भी टीटीडी उपलब्ध करवाता है। फ्री बस सेवा, हास्पीटल के साथ ही प्रतिदिन सांस्कृतिक एवं धार्मिक कार्यक्रम का आयोजन होता है। तिरुमला की यात्रा बस के अलावा पैदल भी की जाती है और टीटीडी ऐसे यात्रियों का सामान नि: शुल्क तिरुपति से तिरुमला पहुंचाने की व्यवस्था करता है। टीटीडी ने श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए वैकुंठम क्यू काम्पलेक्स का निर्माण किया है जहां आराम से अपनी बारी की प्रतीक्षा करते हैं। तिरुपति-तिरुमला देवस्थानम ट्रस्ट की संपूर्ण व्यवस्था बेहतर और इसे अन्य किसी दूसरे स्थान से सर्वश्रेष्ठ बनाती है। आवास एवं दर्शन की व्यवस्था इंटरनेट के माध्यम से भी की जा सकती है। इससे श्रद्धालुओं को बेहतर सुविधा मिली है।
तिरुमला में भगवान श्री वेंकटेश्वर के दर्शन पश्चात स्वामी वेणुगोपाल, आकाशगंगा पाप विनाशम, शिला तोरणम, श्री वारि पादलु, चक्रम तीर्थम, कपिल तीर्थम आदि स्थान भी आस्था के केन्द्र हैं। इन स्थानों के लिए बस जीप और टैक्सी की सुविधा है। श्री वेंकटेश्वर मंदिर से दो किलोमीटर दूर स्वामी वेणुगोपाल के साथ ही हाथीराम की समाधि है। वहीं आकाशगंगा में जल प्रपात है। यहां का जल मंदिर के कार्यों में उपयोग किया जाता है। इस के प्रपात के नीचे श्री हनुमान जी का मंदिर है। आकाशगंगा से कुछ ही दूर पर पाप विनाशम में झरना है जो श्री वेंकटेश्वरा सेंचुरी पार्क में स्थित है। कहते हैं पाप विनाशम में स्नान करने से सारे पाप धुल जाते हैं यहां माता भवानीगंगा का मंदिर है। तिरुमला के दूसरी पहाड़ी पर श्री वारिपादुल में भगवान के श्री चरण स्थापित हैं। वहीं शिला तोरणम संपूर्ण एशिया में अनूठा है जहां पहाड़ इंद्रधनुष के आकार में टूटा हुआ है। उसके साथ ही चक्रमतीर्थ भगवान श्री विष्णु का सुदर्शन चक्र की कथा में संबंधित हैं।
तिरुमिला में भगवान श्री बालाजी के दर्शन पश्चात तलहटी में बसे तिरुपति में माता पदमावती का मंदिर है जहां भक्त माता के दर्शन करते हैं। तिरुपति में स्वामी गोविंदराज का मंदिर भी अद्भूत है इसका विशाल गोपुरम और भगवान निद्रालीन अवस्था में विग्रह के दर्शन होते हैं। यह मंदिर रामानुजाचार्य ने बनवाया था। इस मंदिर से कुछ ही दूर पर श्री राम मंदिर है जहां भगवान श्री राम, लक्ष्मण और माता सीता जी के साथ विराजित है। इस मंदिर के सामने अंजनाद्री मंदिर में श्री हनुमान के दर्शन होते हैं। तिरुपति में अलपिरी पहाड़ी में तलहाटी में इस्कान श्री कृष्णा मंदिर भी श्रद्धालुओं की आस्था का केन्द्र बनता जा रहा है।
तिरुपति बालाजी की तीर्थयात्रा कलियुग में सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। सुख-समृद्धि की मनोकामना यहां पूरी होती है इसलिये देश-विदेश में तिरुपति बालाजी का सर्वोत्तम स्थान है।
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