तपेश जैन

Friday, February 5, 2010

देश का पांचवा कुंभ - राजिम


तपेश जैन
राजिम में हर वर्ष लगने वाले कुंभ मेला में साधु संतों के समागम के साथ हिंदुस्तान की पुरातन परंपराओं को पुनर्जीवित करने की पहल परिलक्षित होती है। वेलेंटाइन डे, फ्रेंडशीप डे, रोज डे जैसे पश्चिमी संस्कृति के पर्वो ने जहां पैर पसार लिए हो वहां प्रतिवर्ष कुंभ स्वरूप मेले की अवधारणा कर उसे सफल करने का प्रयास छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ड़ॉ. रमन सिंह व पर्यटन-संस्कृति मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के लिए चुनौती से कम नहीं था, लेकिन महाशिवरात्रि के पावन दिन छत्तीसगढ़ के प्रयाग राजिम के महानदी-पैरी और सोंढर नदियों के संगम स्थल पर नागा साधुओं के साथ साधु-संतों के शाहीस्नान ने 12 वर्षों में होने वाले चार पुण्य स्थलों की परंपराओं को नया आयाम दिया। माघपूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक आयोजित इस राजिम कुंभ में देशभर के दो हजार से भी अधिक धार्मिक संप्रदाय, अखाड़ों के महंत, साधु-संत-महात्मा, धर्माचार्य और महामंडलेश्वर के साथ ही शंकराचार्य श्री निश्चलानंद जी सरस्वती, अनंत श्री विभूषित द्वारका-शारदा पीठाधीश्वर जगदगुरू स्वामी स्वरूपानंदजी सरस्वती महाराज के समागम आशीर्वाद से यह पुण्य धारा ने अमृत चखा है।
किवंदती है कि देवताओं और दानवों के बीच हुए समुद्र मंथन के बाद जो अमृत निकला था उसकी कुछ बूंदे नासिक, उज्जैन, इलाहाबाद और हरिद्वार में छलकी थी। इन स्थानों में स्थित वृंदावनी, क्षिप्रा, त्रिवेणी संगम और पवित्र गंगा नदी के तट पर 12 साल बाद महाकुंभ का आयोजन होता है।
पुराणों में कहा गया है कि ''अश्वमेघ सहस्त्राणी वाजपेयी समानिच: लक्षौ: प्रदिक्षिणा भूमै: कुंभ स्नानै: पद फलम।ÓÓ
अर्थात आप हजारों वर्षों में यज्ञ कर लें, और हजारों बार पृथ्वी की प्रदक्षिणा कर लें उससे कई अधिक गुणा पुण्य कुंभ काल में स्नान से होता है। नवगठित छत्तीसगढ़ राज्य के हृदय स्थल राजिम की राजधानी रायपुर से दूरी करीब 45 किलोमीटर है। राजिम का अपना धार्मिक महत्व है। यहां के करीब एक दर्जन देवालय देवधरा की देन है।
छत्तीसगढ़ वैसे भी अद्भुत प्रदेश है। यहां की कला संस्कृति, रीति-रिवाज आज भी अबूझ पहेली है। इस प्रदेश के एक बड़े भूभाग को आज तक किसी ने नहीं जांचा-परखा। ''नो मैंस लैण्डÓÓ जैसी इस जगह का नाम है ''अबूझमाड़ÓÓ। आश्चर्यजनक पहलुओं को समेटे इस प्रदेश को भगवान रामचंद्र जी का ननिहाल माना जाता है। कहते हैं कभी इस प्रदेश का नाम दक्षिण कोसल था। कोसल नरेश की सुपुत्री कौशल्या का विवाह अयोध्या नरेश राजा दशरथ से हुआ। कहा तो यहभी जाता है कि रामकथा में जिस दंडकारण्य का वर्णन है वह यहीं छत्तीसगढ़ प्रदेश का बस्तर वन प्रक्षेत्र है जहां भगवान राम ने 14 साल के वनवास का ज्यादातर समय व्यतीत किया। भगवान रामचंद्र माता सीता एवं लक्ष्मणजी ने यहां महानदी पैरी सोंढूर नदियों के संगम स्थल कमल क्षेत्र वर्तमान नाम राजिम के तट पर बने महादेव कुलेश्वर के दर्शन किए थे। भगवान राम के चरण कमल से पवित्र हुए इस संगम की महिमा ही निराली हो गई। युगों-युगों से यहां माघ पूर्णिमा से लेकर शिवरात्रि तक महोत्सव आयोजित होते रहे। महादेव कुलेश्वर के साथ ही यहां पंचकोसी मंदिर की अगहन और माघ मास में पंचकोसी परिक्रमा का विशेष महत्व होता है।
यहां भगवान श्री राजीव लोचन मंदिर में देवविग्रह की पूजा के पश्चात पैरी नदी सोंढूर नदी - महानदी के संगम में स्नान के बाद महादेव कुलेश्वर से प्रारंभ होती है पंचकोसी परिक्रमा, ग्राम पटेवा में पटेश्वर महादेव, महाप्रभु वल्लाभाचार्य की प्रकाट्य स्थली चंपारण्य में चंपेश्वर महादेव, बृम्हनी में ब्रम्हनेश्वर, फिंगेश्वर में फणिकेश्वर और कोपरा में कर्पूरेश्वर दर्शन के बाद कुलेश्वर महादेव मंदिर तक की पंचकोसी परिक्रमा की परंपराएं आदिकाल से जारी हैं। महादेव कुलेश्वर मंदिर के पास ही स्थित प्रसिद्ध लोमश ऋषि का आश्रम दंतकथाओं का साक्ष्य है।
इस पौराणिक धार्मिक स्थल में कई दंतकथाएं प्रचलित है। सती तेलिन राजिम और भगवान विष्णु के श्री विग्रह के साथ ही यहां ईंटों से निर्मित श्री राजीव लोचन मंदिर इतिहास के कई रहस्यों को समेटे हुए हैं। छत्तीसगढ़ के पुरातात्विक वैभव और श्रेष्ठï मूर्तिकला का साक्ष्य श्री राजीव लोचन मंदिर के शिलालेख आठवीं-नौवीं शताब्दी और संवत 895 सन 1145 के है। कलचुरि शासक पृथ्वी देव द्वितीय के सेनापति जगतपाल द्वारा इस मंदिर निर्माण की कथाएं इतिहास में दर्ज हैं।
तीन नदियों के प्राय:द्वीप पर स्थित कुलेश्वर महादेव के मंदिर में स्थापित शिवलिंग को महानदी-पैरी और सोंढूर बारिश के दौरान पांव पखारती है। कहते हैं कि कितनी ही बारिश क्यों न हो यह मंदिर नहीं डूबता है, दूसरे तट पर स्थित पंचेश्वर महादेव इसकी रक्षा करते हैं। छत्तीसगढ़ में इन दोनों मंदिरों को मामा-भांचा का मंदिर कहा जाता है। कुलेश्वर महादेव यानी भांचा जब बारिश के पानी में डूबने लगते हैं तो वे मामा पंचेश्वर महादेव से गुहार लगाते हैं और वे उसकी रक्षा भी करते हैं। इस तरह की कई मान्यताएं प्रचलित हैं।
बहरहाल राजिम महात्मय के संदर्भ में जितना कुछ कहा जाए कम है। हजारों साल का इतिहास, पुरातत्व वैभव और धार्मिक आस्था के इस संगम में कुंभ मेले का हर वर्ष आयोजन अतीत से आगत तक के स्वर्णिम पलों को नव आयाम प्रदान करना है। इस आयोजन से छत्तीसगढ़ को समझने बूझने का अवसर देश-विदेश के लोगों को मिला है। यहां कुंभ मेले के दौरान प्रति दिन होने वाले लोक कला के कार्यक्रमों ने छत्तीसगढ़ की कला संस्कृति को संजोने का भी काम किया है। इसकी ख्याति जैसे-जैसे फैलेगी और इसकी व्यवस्था में सुधार होगा। राजिम कुंभ छत्तीसगढ़ को नयी पहचान देगा।

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