तपेश जैन

Friday, February 5, 2010

कौमारी शक्तिपीठ - आदिशक्ति महामाया मंदिर रतनपुर


तपेश जैन
छत्तीसगढ़ प्राचीन समय से ही शक्ति उपासना का केन्द्र रहा है। यहां के राजवंशों की अपनी अराध्य देवियां रही है । छत्तीसगढ़ के दक्षिण भू-भाग में मां दंतेवश्वरी की पूजा की जाती है तो उत्तर के भूभाग में महामाया का प्रताप है।
राजधानी रायपुर से लगभग 140 किलोमीटर दूर रतनपुर पहाड़ों के बीच बसा है। कभी यहां 1400 से भी ज्यादा तालाब थे। कहते हैं कि महाभारत काल में इस स्थान का नाम रत्नावली था। कहा तो ये जाता है कि यहां कभी नालंदा विश्वविद्यालय जैसा शिक्षा का केन्द्र स्थापित था। दसवीं शताब्दी में कलचुरी राजा रत्नदेव ने तुम्माण खोल से राजधानी यहां लाई और शक्तिरूपेण माँ महामाया की यहां स्थापना की। जंगल और पहाड़ों के बीच स्थापित रतनपुर का महामाया मंदिर तंत्र और शक्ति आराधना का केन्द्र रहा है। नागर शैली में बने मंदिर का मण्डप 16 स्तम्भों पर टिका हुआ है। भव्य गर्भगृह में माँ महामाया की साढ़े तीन फीट ऊंची दुर्लभ प्रस्तर प्रतिमा स्थापित है । दंतकथाओं के अनुसार माँ की प्रतिमा के पृष्ठï भाग में माँ सरस्वती की प्रतिमा है जो विलुप्त मानी जाती है।
आदि पीठ माँ महामाया देवी के इस ऐतिहासिक मंदिर में चैत्र एïवं क्वांर दोनों नवरात्रि के अवसर पर प्रतिदिन लाखों श्रद्धालु माँ महामाया के दर्शनकर पुण्य लभा प्राप्त करते हैं। प्रसिद्ध दंतकथा के अनुसार देवी सती का दाहिना स्कंध इस पवित्र धरा में विमोचित हुआ था इसलिए इसे कौमारी शक्तिपीठ के रूप में भी स्वीकार किया जाता है इसके कारण से कुंवारी कन्याओं को माँ के दर्शन से सौभाग्य की प्राप्ति होती है। यहाँ की शक्ति कुमारी और भैरव भगवान शिव है।
छत्तीसगढ़ में जंवारा जगाकर और जो जलाकर माता सेवा की परंपरा है। देवी के रूप में नवांकुरित गेहूँ, जौं, की अराधना नौ दिन तक की जाती है। वहीं नौ दिन तक जलने वाली अखंड ज्योति से जीवन के अंधकार समाप्त हो जाते हैं। यहां 17 हजार से भी ज्यादा मनोकामना ज्योति प्रज्जवलित की जाती है।
छत्तीसगढ़ में जंवारा जगाने एवं अखंड जोत जलाने के अलावा जसगीत के माध्यम से देवी के सामूहिक गुणगान की परंपरा है। जसगीत छत्तीसगढ़ी लोक जीवन के आस्था के गीत है। और जसगीतों ने भक्ति को अलग ही रूप प्रदान किया है। माँ महामाया मंदिर के प्रांगण में माँ भद्रकाली का मंदिर और भगवान सूर्य, श्री विष्णु, श्री हनुमान, श्री भैरव और भगवान शिव की प्राचीन प्रतिमाएं प्रस्थापित है।
आदिशक्ति माँ महामाया मंदिर के पृष्ठï भाग में ही कण्डी देवल मंदिर प्रस्थापित है। नीलकंठ महादेव के इस भव्य मंदिर का पूर्वनिर्माण केन्द्रीय पुरातत्व विभाग ने कराया है। राष्टï्रीय धरोहर की सूची में शामिल ये मंदिर 15वीं शताब्दी का है।
कण्डीदेवल मंदिर को भरव उपासकों के तंत्र-मंत्र साधना का स्थल भी माना जाता है। इस मंदिर की एक और खास विशेषता ये है कि इसके चारों दिशाओं में प्रवेश द्वार है और दीवारों पर देवी-देवताओं के चित्र उत्कीर्ण है। श्री महामाया देवी मंदिर के पाश्र्व में आम्रकुंजों से घिरे बैरागवन में सरोवर के साथ ही भगवान नर्मदेवश्वर महादेव का मंदिर है और दूसरी ओर राजा राजसिंह का भव्य स्मारक है जिसे बीस दुवारिया मंदिर कहते हैं। ये मंदिर मूर्ति विहीन है और इसमें 20 द्वार है। बैरागवन के पास ही खिचरी केदारनाथ का प्राचीन मंदिर भी दर्शनीय है।
आदि शक्ति माँ महामाया मंदिर की कुछ ही दूरी पर श्री काल भैरव का मंदिर है जहाँ करीब नौ फीट श्री कालभैरव की भव्य प्रतिमा विराजमान है। तंत्र साधना के केन्द्र और कौमारी शक्तिपीठ होने के कारण श्री कालभैरव की पूजा अर्चना का विशेष महत्व है।
श्री काल भैरव मंदिर से कुछ ही दूर पर पहाड़ी पर माँ महालक्ष्मी का भव्य मंदिर है। लखनी देवी मंदिर के नाम से विख्यात इस मंदिर का निर्माण तेरहवीं शताब्दी में गंगाधर शास्त्री ने करवाया था इस मंदिर का आकार शास्त्रों में वर्णित पुष्पक विमान की तरह है। यहां नवरात्रि में जंवारा बोया जाता है और कई अनुष्ठïान संपन्न होते हैं।
लखनी देवी मंदिर के आगे मुख्य मार्ग पर ऐतिहासिक शहर नामक बस्ती है जिसके राजा ---------- था और अपनी महारानी के लिए बादल महल का निर्माण करवाया था।
रतनपुर बिलासपुर मार्ग पर श्री खंडोबा मंदिर भी दर्शनीय स्थल है। यहाँ भगवान शिव और भवामी की अश्वरोही प्रतिमा प्रस्थापित है। इस मंदिर का निर्माण मराठा नरेश बिंबाजी भोसले की रानी ने अपने भतीजे खांड़ों जी की स्मृति में करवाया था। दंत कथा है कि मणिमल्ल नामक दैत्यों के संहार के लिए भगवान शिव ने मार्तण्ड भैरव का रूप धारण कर सह्यादि पर्वत पर संहार किया था। इस मंदिर के पाश्र्व में प्राचीन सरोवर दुलहरा तालाब स्थित है।
कभी ये कलचुरीकालीन भवन निर्माण का बेजोड़ नमूना था और इसमें साथ मंजिले थीं। अब दो मंजिल ही शेष रह गई हैं। इसलिए सतखंडा महल भी कहा जाता है। महल के पास ही अस्तबल और जूना शहर में कोको बाबली और कंकन बावली भी उल्लेखनीय स्थल है।
महामाया मंदिर से कुछ ही दूर पर राजा पृथ्वीदेव द्वारा निर्मित ऐतिहासिक किला के पुरा अवशेष स्थित है। चारो तरफ खाइयों से घिरे राजे किले में चार दरवाजे सिंहद्वार, गणेश द्वार, भैरव द्वार और सेमर द्वार बने हुए हैं।
गज किला से थोड़ी ही दूर पर स्थित है वृद्धेश्वर महादेव का मंदिर। बूढ़ा महादेव के नाम से प्रसिद्ध इस मंदिर का निर्माण राजा पृथ्वीदेव द्वितीय ने करवाया था।
बूढ़ा महादेव के ऊपर पहाड़ी पर स्थित हे रामटेकरी मंदिर। श्री मंदिर में भगवान राम, देवी सती, भरत, लक्ष्मण और शत्रुहन की प्रतिमा पंचायतन शैली में विराजमान है।
रामटेकरी मंदिर मार्ग के आगे हैं गिरजावन श्री हनुमान मंदिर। इसका भी निर्माण राजा पृथ्वीदेव द्वितीय द्वारा करवाया गया था। दक्षिण मुखी भगवान हनुमान का ये मंदिर ऐतिहासिक है।
कभी मणिपुर के नाम से विख्यात रहे रतनपुर की महत्ता हर काल में रही है। पौराणिक ग्रंथ महाभारत जैमिनी पुराण में भी इसे राजधानी होने का गौरव प्राप्त है। इसे चतुर्दशी नगरी भी कहा जाता है जिसका अर्थ है कि इसका अस्तित्व चारो युगों में रहेगा।

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