तपेश जैन

Monday, February 8, 2010

छत्तीसगढ़ के प्रमुख तीर्थ स्थलों की एक झलक

भारतवर्ष की पावन भूमि के हृदय प्रक्षेत्र में स्थित छत्तीसगढ़ अनादिकाल की देवभूमि ेक रूप में प्रतिष्ठिïत है। इस भूमि पर विभिन्न संप्रदायों के प्रमुख मंदिर, मठ, देवालय इस प्रक्षेत्र की विशिष्टï संस्कृति और परंपराओं के परिचायक हैं। अपने देश के विविध क्षेत्रों की धार्मिक, पौराणिक, आध्यात्मिक महत्ता शास्त्रों और पुराणों में रुपायित मिलती है। छत्तीसगढ़ भी ऐसा ही प्रक्षेत्र है जिसकी यात्रा का पुण्य लाभ जन-जन के लिए शुभकारी है। यहां शैव, वैष्णव, जैन एवं बौद्ध धर्म तथा शाक्त संप्रदाय के इष्टïदेवों की प्रतिमाएं इस भूमि की महत्ता स्वत: परिभाषित करती हैं। छत्तीसगढ़ के प्रयागराज राजिम, रतनपुर, डोंगरगढ़, खल्लारी, दंतेवाड़ा, बारसूर, देवभोग, सिहावा, आरंग, भीमखोज, सिरपुर, भोरमदेव, मल्हार, शिवरीनारायण, ताला, जांजगीर, पाली, खरौद, डीपाडीह, दंतेवाड़ा, भैरमगढ़, कवर्धा, अंबिकापुर, दामाखेड़ा, गिरौदपुरी जैसे प्रभृति क्षेत्रों में अवस्थित साधना और आराधना के पावन केंद्र इस प्रक्षेत्र की आलौकिकता व दिव्यता को रेखांकित करते हैं। वर्तमान में भी पुरातत्व विभाग छत्तीसगढ़ के अनादिकालीन स्वरूप को निखारने के कार्य में मशक्कत के साथ जुटा हुआ है। आइए हम जानते हैं छत्तीसगढ़ के कुछ ऐसे स्थलों के विषय में जहां होती है हमें पराशक्ति और परमेश्वर से साक्षात्कार की अनुभूति।

रायपुर - छत्तीसगढ़ की संस्कारधानी और राजधानी रायपुर में अवस्थित है प्राचीनतम मराठाकालीन दूधाधारी मठ, महामाया मंदिर, हटकेश्वर महादेव मंदिर, बंजारी मंदिर, रावाभाठा, कंकाली मंदिर और शदाणी दरबार। ये सभी स्थल राजधानी से दस बारह किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है जहां पर्व-प्रसंगों पर श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है।

राजिम - रायपुर से 45 किलोमीटर दूर राजिम में भगवान राजीवलोचन मंदिर, कुलेश्वर महादेव, तेलिन सती का मंदिर, राम-जानकी मंदिर, पंचकोशी परिक्रमा प्रक्षेत्र, लोमष ऋषि का आश्रम और साथ ही पैरी, सोंढूर और महानदी का त्रिवेणी संगम स्थल। यहां पुरातनकाल से ही माघ मास में राजिम मेला लगता रहा है जिसमें सम्मिलित होकर हजारों की संख्या श्रद्धालुजन भगवान राजीवलोचन और कुलेश्वर महादेव जी पूजा-अर्चना कर पुण्य लाभ अर्जित करते हैं।

चम्पारण - रायपुर से 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है चम्पारण जहां वैष्णव संप्रदाय के प्रवर्तक स्वामी वल्लभाचार्य जी का प्राकट्य हुआ था। देशभर वैष्णव संप्रदाय से संबद्ध श्रद्धालुजनों चम्पारण की यात्रा कर पावन तिथियों पर आयोजित महोत्सव में सम्मिलित होकर पुण्य लाभ अर्जित करते हैं। इस पावन स्थली पर न केवल गुजराती समाज के श्रद्धालुजनों की प्रगाढ़ आस्था है वरन सभी संप्रदायों के लोग यहां आते हैं और श्री वल्लभाचार्य के जीवन चरित्र से प्रेरित होकर देवआराधना के पुण्यप्रद मार्ग पर अग्रसर होते हैं।

आरंग - रायपुर से 36 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है आरंग जिसे शिव की नगरी भी माना जाता है। यहां जैन सरोहर, प्राचीन जैन मंदिर भाण्ड देवल, प्रसिद्ध शिव मंदिर-नागेश्वर मंदिर अवस्थित हैं। महानदी के किनारे बसे आरंग के इर्द-गिर्द छोटे-बड़े अनेक मंदिर व साधना केंद्र हैं जो इसे शिवभक्तों की नगरी के रुप में प्रतिष्ठिïत करते हैं।

सिरपुर - रायपुर से 84 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है छत्तीसगढ़ की प्राचीनतम राजधानी सिरपुर। यहां अवस्थित है 7-8वीं सदी में ईंटों से निर्मित लक्ष्मण मंदिर जो अपने आप में अद्भुत कलात्मक अभिव्यक्ति को समेटे हुए हैं। महानदी के पास स्थित है प्राचीन गंधेश्वर शिव मंदिर जहां प्रतिवर्ष शिवरात्रि के अवसर पर मेले की परंपरा वर्षों से चली आ रही है। इसके अलावा सिरपुर में बौद्ध स्मारक, स्वास्ति बौद्ध विहार, आनंद प्रभु बौद्ध विहार, संग्रहालय आदि भी इस प्रक्षेत्र की विशेषता की ओर इंगित करते हैं। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वïेनसांग ने भी भारत भ्रमण के संदर्भ में अपनी अभिव्यक्ति में इस स्थान को प्रमुखता के साथ उद्दत किया है।

तुरतुरिया - रायपुर से 125 किलोमीटर दूर स्थित है तुरतुरिया जिसे धार्मिक स्थल के रुप में मान्यता प्राप्त है। जनश्रुति है कि इस पावन प्रक्षेत्र में महर्षि वाल्मीकि जी ने आश्रम की स्थापना की थी। यहां भी हर वर्ष तिथि विशेष पर मेले की परंपरा वर्षों से चली आ रही है।

गिरौदपुरी - रायपुर से 125 किलोमीटर दूर स्थित है गिरौदपुरी जो सतनाम पंथ के प्रवर्तक धर्मगुरु संत बाबा गुरु घासीदास की जन्मस्थली है। गिरौदपुरी विश्व भर में सतनाम पंथ के अनुयाइयों की आस्था का पावन केंद्र है। यहां भी वर्षों से मेले की परंपरा चली आ रही जिसमें लाखों की संख्या में सतनाम समाज के लोग जुटते हैं और पूरी श्रद्धा के साथ गुरु बाबा घासीदास जी की आराधना करते हैं।

पलारी - रायपुर से 68 किलोमीटर दूर स्थित पलारी में ईंटों से निर्मित शिव मंदिर है। यह मंदिर 8-9वीं में बना हुआ माना जाता है। इस मंदिर में भी शिव भक्त सुदूर इलाकों से आकर शिव आराधना करते हैं।

नारायणपुर - रायपुर से 112 किलोमीटर दूर स्थित है नारायणपुर में शिवजी का प्राचीन मंदिर है। 10-11वीं सदी में निर्मित इस मंदिर की कलात्मक छटा देखते ही बनती है। यहां भी शिव भक्त अपने ईष्टï देव की कृपा प्राप्ति के लिए साधना और आराधना बरसों से करते आ रहे हैं।

खल्लारी - रायपुर से 80 किलोमीटर की दूरी पर स्थित खल्लारी का जगन्नाथ मंदिर अंचल का प्रमुख धार्मिक स्थल है। 10-11वीं सदी कलचुरीकाल में हम इस मंदिर का निर्माण हुआ था। इस मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित है मां खल्लारी का मंदिर जहां प्रतिवर्ष चैत्र माह में मेला लगता है।

सिहावा - रायपुर से 160 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है सिहावा-नगरी। सिहावा पर्वत महानदी की उद्गम स्थली है। इसी पर्वत पर श्रृंगी ऋषि जी का आश्रम है। यहां 9-10वीं सदी में निर्मित बणेशवर शिवमंदिर है। सिहावा के पर्वतीय इलाकों में सप्त ऋषि - अंगिरा, शरभंग, मुचकुंद अगस्त्य आदि ऋषियों के आश्रम होने की जनश्रुति प्रचारित है।

देवखूंट - रायपुर से 150 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नगरी के पास देवखूंट में प्राचीन शिवमंदिर है जो वर्तमान में महानदी के दुधावा बांध डुबान में जलमग्र है। यह मंदिर पुरातत्व की दृष्टिï से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यहां 10-11वीं सदी की गदरुडऩारायण एवं उमामहेश्वर की अत्यंत ही कलात्मक प्रतिमा संरक्षित है।

दामाखेड़ा - रायपुर से 85 किलोमीटर दूर स्थित दामाखेड़ा कबीरपंथियों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। यहां हर साल कबीर जयंती के अवसर पर विशाल मेला लगता है जिसमें सम्मिलित होने देश के कोने-कोने से श्रद्धालुजन आते हैं। विदेशों में निवासरत कबीरपंथी भी इस मेले में सम्मिलित होते हैं।

देवबलोदा - रायपुर से 20 किलोमीटर की दूरी पर भिलाई मार्ग पर स्थित देवबलोदा का प्राचीन शिवमंदिर है। यह पुरातात्विक दृष्टिïकोण से अत्यंत ही महत्वपूर्ण मंदिर है। 10-11वीं सदी में शिल्पांकित इस मंदिर में कलात्मक शिल्पकारी अत्यंत मनोहारी है। इस मंदिर में तत्कालीन सामाजिक समरसता को प्रदर्शित कर छत्तीसगढ़ की धार्मिकता में सामाजिक मूल्यों का चित्रण किया गया है।

बालोद - रायपुर से 98 किलोमीटर व दुर्ग से 58 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है बालोद जहां प्राचीन किला, मंदिर एवं सती चबूतरा दर्शनीय है।

झलमला- दुर्ग से 98 किलोमीटर की दूरी पर बालोद के पास ही स्थित है ग्राम झलमजला। यहां छत्तीसगढ़ की गोड़ जाति द्वारा इष्टïदेवी के रुप में पूजित मंदिर गंगा मैया का प्रसिद्ध मंदिर है। यहां नवरात्रि पर मेला लगता है जिसमें सम्मिलित होने समीपवर्ती गांव के हजारों श्रद्धालु आते हैं।

देऊरबीजा-सीतादेवी मंदिर - दुर्ग जिले के बेमेतरा से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है देऊरबीजा ग्राम जहां प्रसिद्ध सीतादेवी मंदिर है। 10-11 सदी का यह मंदिर अत्यंत कलात्मक है।

सरदा - रायपुरसे 50 किलोमीटर एवं बेमेतरा से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है सरदा। यहां 7-8वीं सदी में निर्मित प्राचीन शिव मंदिर में उमा-महेश्वर एवं अद्र्ध-नारीश्वर की प्रतिमा विशेष रूप से दर्शनीय है क्योंकि इस प्रतिमा में पार्वती को शिव की बांई ओर प्रदर्शित न कर दाहिनी ओर प्रदर्शित किया गया है जो छत्तीसगढ़ के मूर्ति-शिल्प में विलक्षण कही जाती है।

धमधा-त्रिमूर्ति महामाया- दुर्ग से 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है धमधा जहां कलचुरी काल में निर्मित प्राचीन किला दर्शनीय है। यहां त्रिमूर्ति महामाया मंदिर में मां महामाया अधिष्ठïात्री देवी के रुप में प्रतिष्ठिïत है। इस मंदिर में मां के दर्शनार्थ दूर-दूर से श्रद्धालुजन आते हैं।

नगपुरा-जैन तीर्थ - दुर्ग जिले से दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। अंचल का प्रसिद्ध जैन तीर्थ नगपुरा। यहां भगवान पाश्र्वनाथ जी का प्राचीन जैन मंदिर है। श्री उवसग्गहरं पाश्र्वनाथ मंदिर के दर्शन हेतु देश के कोने-कोने से जैन तीर्थ यात्री आते हैं। संपूर्ण भारत वर्ष में अवस्थित में जैन तीर्थ स्थलों में नगपुरा की विशेष महत्व है।

मां बम्लेश्वरी देवी - डोंगरगढ़ - छत्तीसगढ़ के आद्याशक्ति की आराधना का अप्रतिम केंद्र है। डोंगरगढ़ जहां पहाड़ी पर बगुलामुखी स्वरूपा मां बम्लेश्वरी विराजमान है। डोंगरगढ़ प्राचीनकाल में कामंतीपुर के नाम से जाना जाता है जहां के राजा कामसेन ने अपनी ईष्टï देवी का मंदिर स्थापित करवाया था। डोंगरगढ़ हावड़ा-मुंबई रेल मार्ग पर स्थित है। 1600 फीट की ऊंचाई पर स्थित मां बम्लेश्वरी के इस मंदिर में दोनों ही नवरात्रियों में दर्शनार्थियों का हुजूम उमड़ता है। बम्लेश्वरी देवी का एक और मंदिर नीचे स्थित है जिसकी प्रसिद्धि छोटी बम्लई के रूप में है। डोंगरगढ़ में ही एक अन्य पहाड़ी पर भगवान गौतम बुद्ध की 30 फीट ऊंची प्रतिमा है जिसकी प्रज्ञागिरी के रुप में प्रसिद्ध इस स्थल पर बौद्ध धर्म के श्रद्धालुजनों का मेला लगता है।

मौलीमाता मंदिर, सिंगारपुर-भाटापारा-रायपुर से 67 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है मौली माता का मंदिर जो प्राचीन है। भाटापारा के सिद्ध स्थल क्षेत्र में औघड़ भगवान राम ने मां महाकाली की आराधना के लिए मंदिर की स्थापना की थी। इस मंदिर की अपनी अलग ही महत्ता है जहां दूर-दूर से श्रद्धालुजन आते हैं और मां महाकाली का आशीष प्राप्त करते हैं।

विन्ध्यवासिनी देवी बिलईमाता-धमतरी - रायपुर से 80 किलोमीटर दूर धमतरी में मां विन्ध्यवासिनी देवी का मंदिर स्थित है। विन्ध्यवासिनी देवी की ख्याति बिलईमाता के रुप में भी है। जनश्रुति के अनुसार गोड़ नरेश धुर्वा ताल ने इसे बनाया है। यहां नवरात्रि के अवसर पर मेला लगता है।

कंकालीन माता - कांकेर - रायपुर से 140 किलोमीटर दूर स्थित हैं कांकेर जहां का कंकालीन माता मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का अति पावन केंद्र है। बस्तर के नागवंशीय , नलवंशीय तथा सोमवंशीय राजाओं की इष्टïदेवी के रूप में कंकालीन माता की प्रतिष्ठïा है। इसी मंदिर के समीप ही भैरवी देवी की एक प्राचीन मूर्ति है।

दंतेश्वरी देवी - दंतेवाड़ा - जगदलपुर से 80 किलोमीटर दूर काकतीय वंश के राजाओं की आराध्य देवी दंतेश्वरी देवी का प्राचीन मंदिर है। शंखिनी-डंकिनी नदियों के संगम स्थल के समीप स्थित दंतेश्वरी मंदिर में प्रतिष्ठिïत आद्याशक्ति की प्रतिमा दर्शनीय है। मां दंतेश्वरी का प्रकाट्य असुरों के नाश के लिए हुआ था।

बारसूर - जगदलपुर जिले में गीदम से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है बारसूर जो असुरराज बाणासुर की राजधानी थी। यहां विश्व में तीसरी गणेश जी की विशाल प्रतिमा है। कुछ ही दूरी पर स्थित मामा-भांजा मंदिर, बत्तीसा मंदिर, सन्द्रादित्य मंदिर भी दर्शनीय है। बारसूर के ये सभी मंदिर 11वीं सदी के बताए जाते हैं।

महामाया देवी - रतनपुर- बिलासपुर से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं रतनपुर जहां अवस्थित महामाया देवी का अति प्राचीन मंदिर। इस मंदिर को शक्तिपीठ के रुप में मान्यता प्राप्त है। शास्त्रों और पुराणों में वर्णित कथानुसार यहां आद्याशक्ति के दो अंग गिरे थे। मंदिर में अवस्थित विग्रह के दो स्वरूप हैं। यहां हर वर्ष नवरात्रि के अवसर पर भव्य मेले की परंपरा वर्षों से चली आ रही है।

मल्हार डिडनेश्वरी देवी एवं पातालेश्वर मंदिर - बिलासपुर से 32 किलोमीटर की दूरी पर स्थित छत्तीसगढ़ की प्राचीन नगरी मल्हार। यहां डिडनेश्वरी देवी का अति प्राचीन नगरी मल्हार। यहां डिडनेश्वरी देवी का अति प्राचीन मंदिर है। समीप ही पातालेश्वर महादेव का मंदिर जिसका निर्माण कलचुरी काल में हुआ था। यहां शैव, वैष्णव, जैन एवं बौद्ध धर्मों के पुरावशेष विद्यमान हैं।

शिवरीनारायण मंदिर - पुरुषोत्तम तीर्थ के रुप में विख्यात शिवरीनारायण बिलासपुर से सड़क मार्ग पर 65 किलोमीटर की दूरी पर तथा रायपुर से 178 किलोमीटर कीदूरी पर स्थित है। जांजगीर-चांपा के अंतर्गत महानदी, शिवनाथ और जोंकनदी के संगम स्थल पर अवस्थित है शिवरीनारायण का मंदिर। जनश्रुति के अनुसार भगवान राम ने शबरी माता से झूठे बेर इसी स्थान पर खाए थे। इसी कारण इस क्षेत्र का नाम शबरीनारायण पड़ा और कालांतर में शिवरीनारायण के रुप में प्रख्यात हुआ। यह भी जनश्रुति प्रचलित है कि माघ पूर्णिमा के दिन भगवान जगन्नाथ स्वामी पुरी से स्वयं आकर भगवान शिवरीनारायण के दर्शन करते हैं। इस तिथि को यहां मेले की परंपरा वर्षों से चली आ रही है। 12वीं सदी में निर्मित इस मंदिर में विष्णु जी की चतुर्भुजी प्रतिमा है। यहीं पर चंद्रचूड़ महादेव जी का मंदिर भी है।

खरौद लक्ष्मणेश्वर महादेव - बिलासपुर से 42 किलोमीटर एवं शिवरीनारायण से 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ग्राम खरौद। खरौद को छत्तीसगढ़ का काशी कहा जाता है। जहां शिव जी का अति

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